Lord Shiva avatars in Hindi

शिव के 19 अवतार की विशेष रहस्यमय कहानियॉ जाने इनके बारे में || Lord Shiva avatars in Hindi

आध्यात्म धर्म और आध्यात्म

मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्णा, बुद्ध और आने वाला कल्कि अवतार यह सब ही भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के 10 अवतार हैं, जिनको हर कोई जानता है। लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि भगवान विष्णु के साथ ही देवों के देव महादेव (Mahadev) ने भी धरती पर अवतार लिए हैं। भगवान शंकर (Lord Shiv) और ब्रह्मा देव (Bhram dev) के अवतारों के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। वैदिक मान्यताओं के हिसाब से इस सृष्टि के सृजन के लिए, पालन के लिए और विनाश के लिए परब्रह्मा परमात्मा ने खुद की ही तीन महाशक्तियों को कार्य सौंपा था। निर्माण और उत्पत्ति का काम ब्रह्मदेव को मिला था वही पालन का दायित्व भगवान विष्णु के कंधे पर आया था और संहार करने का कार्य महादेव शिव को मिला था। जिस तरह भगवान विष्णु ने अपने कर्तव्य के निर्वहन के लिए अवतार धारण किए थे, उसी तरह भगवान शिव ने भी अवतार लिए थे। आपको बता दें कि देवों के देव महादेव ने 19 अवतार ( Lord Shiva avatars in Hindi) लिए थे। ग्रंथों के हिसाब से उनके अवतारों की महत्वपूर्ण कहानी और उसके पीछे का रहस्य हम आपको बताने जा रहे हैं।

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भगवान शंकर के अवतारों के बारे में कई पुराणों में है उल्लेख

पौराणिक पुराण यानी की शिव पुराण (Shiv puran) में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का उल्लेख है किसी जगह 24 है तो कहीं उनके 19 अवतारों के बारे में वर्णन मिलता है। बता दें कि महादेव शंकर के अंशावतार भी हुए हैं। कुछ अवतार उनके तंत्रमार्गी है तो कुछ दक्षिणमार्गी।

भगवान शिव के दसावतार:-  1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. भैरव, 5. षोडश, 6. छिन्नमस्तक गिरिजा, 7. बगलामुख, 8. धूम्रवान, 9. कमल, 10. मातंग यह भगवान शिव के 10 अवतार हैं जो कि तंत्र शास्त्र से वास्ता रखते हैं।

भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार भी हैं-  1. कपाली, 2. भीम, 3. विरुपाक्ष, 4. पिंगल, 5. अजपाद, 6.  शास्ता, 7. विलोहित, 8. शंभू, 9. चण्ड, 10. आपिर्बुध्य, 11. भव के नाम से जाना जाता है। जिनका उल्लेख कुछ शास्त्रों में भी अलग अलग नाम से मिलता है।

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भगवान शिव के 19 अवतार कौन कौन से हैं ? (Lord Shiva avatars in Hindi)

भगवान शंकर द्वारा लिए गए 19 अवतारों की ज्यादातर चर्चा होती है शिव पुराण में जिसका उल्लेख मिलाता है जिसमें 1. वीरभद्र, 2. पिप्पलाद, 3. नंदी अवतार, 4. भैरव, 5. अश्वत्थामा, 6. शरभावतार, 7. गृहपति अवतार, 8. ऋषि दुर्वासा, 9. हनुमान, 10. वृषभ, 11. यतिनाथ, 12. कृष्ण दर्शन, 13. अवधूत अवतार, 14. भिक्षुवर्य अवतार, 15. सुरेश्वर, 16. किरात, 17. ब्रह्मचारी, 18. सुनटनर्तक, 19. यक्ष अवतार माना गया है। आईये विस्तार से जानते है महादेव के 19 अवतारों के बारे में

1. वीरभद्र (Virabhadra) जिसने काटा था दक्ष का सिर

महादेव (Mahadev) का पहला अवतार वीरभद्र माना जाता है, जो उनका ही एक गण माना गया है। वीरभद्र महादेव की जटा से उत्पन्न हुआ था। दरअसल जब महादेव के ससुर दक्ष द्वारा यज्ञ आयोजित किया गया और उन्हें और माता सती (Goddess Sati) को नहीं बुलाया गया था तो उस यज्ञ में माता सती क्रोधित होकर पहुंची थी और इसी क्रोध में उन्होंने अपना देह त्याग दिया था। माता सती के देह त्यागने के खबर जैसे ही महादेव को लगी तो वह गुस्से से आग बबूला हो गए और उन्होंने तब अपने सिर से एक जटा उखाड़ी थी और उसे पर्वत पर पटक दिया था। उस जटा के पूर्व भाग से एक महाभयंकर वीरभद्र (Virabhadra) प्रकट हुआ था। वीरभद्र (Virabhadra) ने भगवान शिव के द्वारा दी गई आज्ञा से दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया था, इसके साथ ही वीरभद्र ने दक्ष (Dakshya) का सिर काट कर भगवान शिव के सामने रख दिया था। दक्ष के भगवान शिव से आग्रह करने पर और माफी मांगने पर उनके द्वारा बकरे का सिर लगाकर राजा दक्ष को दोबारा जिंदा कर दिया गया था।

2. पिपलाद (Pippalada) के रुप में महादेव ने लिया था अवतार

भोलेनाथ ने अपने परम तपस्वी महर्षि दधीचि के बेटे के रूप में अपना पिपलाद (Pippalada) अवतार लिया था, ऐसा माना जाता है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा था कि ऐसा क्या कारण था जो मेरे पिता ने मेरे जन्म से पहले ही मुझे छोड़कर चले गए, जिस पर देवताओं ने उन्हें बताया कि शनि दृष्टि के कारण ऐसा कुयोग बना कि उनके जन्म से पहले ही उनके पिता उन्हें छोड़ कर चले गए जिसके बाद पिप्पलाद (Pippalada) को यह बात सुनकर काफी क्रोध आया और उन्होंने शनि देव को नक्षत्र मंडल से गिरने का ही श्राप दे दिया। पिप्पलाद द्वारा दिए गए श्राप के कारण शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। शनि को गिरता देख देवताओं द्वारा पिप्पलाद (Pippalada) से शनि को माफ करने की प्रार्थना की गई, लेकिन पिप्पलाद ने शनि को इस शर्त पर माफ किया कि वह जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु होने तक किसी को कोई कष्ट नहीं देंगे। तभी से ऐसा माना जाता है कि अगर शनि की पीड़ा से दूर होना है तो पिप्पलाद का स्मरण करना चाहिए। पिप्पलाद के स्मरण मात्र से ही शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। इसके साथ ही महाशिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव के इस अवतार का नामकरण स्वयं ब्रह्म देव ने किया था।

3. नंदी (Nandi) के रुप में भी भोलेनाथ ने लिया था अवतार

जहां भगवान शिव होते हैं वहां नंदी न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। देश और दुनिया में कोई ऐसा शिवालय नहीं मिलेगा जहां नंदी न हो। नंदी को भगवान शिव (Lord Shiva) के गणों में सबसे प्रमुख माना जाता है। भगवान शिव का एक अवतार नंदी (Nandi) का भी अवतार मनाया जाता है, जिसकी कथा हम आपको बताने जा रहे हैं । ऐसा कहा जाता है कि एक वक्त की बात है जब शिलाद मुनी ब्रह्मचारी थे, लेकिन वंश समाप्त होता देख शिलाद के पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा था, जिसके बाद शिलाद ने मृत्युहीन और आयोनिक संतान की कामना भगवान शंकर से की थी और उसके लिए घोर तपस्या भी की थी। जिसके फलस्वरूप स्वयं भगवान शंकर शिलाद को वरदान दिया था कि वह खुद उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। कुछ वक्त बीत जाने के बाद जब शिलाद भूमि जोत रहे थे तो वहां से उन्हें एक भूमि से उत्पन्न बालक मिला, जिसका नाम शिलाद ने नंदी रखा था। जिसके बाद भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया था और नंदी नंदेश्वर हो गए थे। नंदी का विवाह मरुतों की पुत्री सुयशा से हुआ था।

4. भैरव (Bhairav) अवतार को मना जाता है महादेव का पूर्ण रुप

शिवपुराण की कथाओं के अनुसार भैरव (Bhairav) को महादेव का पूर्ण रूप माना गया है। ऐसी कथा है कि भोलेनाथ की माया से प्रभावित होकर भगवान विष्णु और ब्रह्मा देव खुद को अधिक श्रेष्ठ मानने लगे थे। इसी दौरान वहां उन्हें तेजपुंज के बीच एक पुरुषाकृति दिखाई दी, जिसको देखकर ब्रह्माजी कहते हैं कि चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र इसलिए तुम मेरी शरण में आओ। ब्रह्मदेव की यह बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ जाता है और इस दौरान भगवान शंकर ने पुरुषाकृति से कहा कि आपकी भांति लाल शोभित होती है इसी कारण से आप अब साक्षात्कार कालराज है और भीषण होने से भैरव है । भगवान शंकर से वर पाने के बाद कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून (Figures Nail) का इस्तेमाल करते हुए ब्रह्मदेव के पांचवे सर को काट दिया था। ब्रह्मा का सिर काटने के चलते भैरव (Bhairav) पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया था। जिसके बाद ब्रह्महत्या (Bhramhatya) के पाप से मुक्ति पाने के लिए भैरव काशी पहुंते थे और उनको अपने दोष से मुक्ति मिल गई थी। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अति फल स्वरुप ही बताई गई है।

5. अश्वथामा (Ashwathama) है भगवान शंकर का पांचवा अवतार

भगवान शंकर का पांचवा अवतार अश्वथामा (Ashwathama) माना जाता है। महाभारत के अनुसार पांडवों के जो गुरु थे द्रोणाचार्य उनके पुत्र अश्वत्थामा (Ashwathama) वो भगवान शंकर, यम, काल, क्रोध के अंशावतार थे। गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या के फल स्वरुप समय आने पर स्वन्तिक रूद्र ने अपने अंश से गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया था। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा काफी बलशाली माने जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार आज भी अश्वथामा अमर हैं और धरती पर वास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु के दसवे अवतार कल्कि की सहायता के लिए अश्वथामा भी आगे आएंगे।

6. शरभावतार (Sharbh avtar) लेकर महादेव ने किया था नृसिंह का क्रोध शांत

शरभावतार (sharbh avtar) महादेव का छठा अवतार माना जाता है, शरभावतार में भगवान महादेव का स्वरूप में एक और जहां आधा स्वरुप मृग (हिरण) का है वहीं बाकि का स्वरुप शरभ पक्षी का है, जिसको पुराणों में वर्णित 8 पैरों वाला जंतु माना गया है जो कि शेर की तरह शक्तिशाली है। इस अवतार को लेकर कथा बताई जाती है कि जब हिरण्यकशिपु (Hiranyakashipu) का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था तब हिरण्यकशिपु (Hiranyakashipu) का वध करने के बाद भी जब भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के नरसिंह (Narsingh) अवतार का क्रोध शांत नहीं हुआ था तो अन्य देवता गण भोलेनाथ के पास पहुंचे थे। तब भोलेनाथ ने शरभावतार लिया था और इस अवतार के रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे थे और उनकी स्तुति की थी। इसके बावजूद भी नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई थी, जिसके बाद शरभावतार धारण किए भगवान शिव ने नृसिंह को अपनी पूंछ से लपेट लिया और उनको अपने साथ आकाश ले गए थे, तब जाकर कहीं भगवान नृसिंह का का क्रोध शांत हुआ था।

7. गृहपति (Grihapati) अवतार में शंकर भगवान ने लिया था जन्म

गृहपति (grihapati) अवतार भगवान शंकर का सातवां अवतार माना जाता है। इसको लेकर एक कथा प्रचलित है जिसमें बताया गया है कि नर्मदा के तट पर एक धर्मपुर नाम का गांव था, जहां एक मुनि विश्वनार अपनी पत्नी शुचिष्मती के साथ रहते थे। एक दिन ऋषि की पत्नी ने उनसे शिव की तरह पुत्र को प्राप्त करने की इच्छा जताई, जिसके बाद पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनाथ काशी आ पहुंचे, जहां उन्होंने घोर तपस्या की और भोलेनाथ के वीरेश लिंग की पूजा अर्चना की। एक दिन पूजा-अर्चना करने के दौरान ही मुनि को वीरेश लिंग के बीच में एक बालक दिखाई पड़ा, जिसको देख मुनि विश्वनार ने उस बाल रूप धारी शिव की पूजा अर्चना की। ऋषि विश्वनार की पूजा से भोलेनाथ इतने प्रसन्न हो गए कि उन्होंने ऋषि को शुचिष्मती के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया और वह कुछ समय बाद शुचिष्मती के कोख से महादेव पुत्र रूप में प्रकट हुए। बताया जाता है कि ऋषि विश्वनार और उनकी पत्नी शुचिष्मती के पुत्र का नाम खुद ब्रह्मा जी ने रखा था। ब्रह्मा जी ने उनके बालक को गृहपति नाम दिया था।

8. ऋषि दुर्वासा (Rishi Durvasa) के रुप में महादेव का अवतार मना जाता है प्रमुख

महादेव का वैसे तो हर अवतार ही पूजनीय है पर इनमें से ऋषि दुर्वासा (Rishi Durvasa) का अवतार प्रमुख माना गया है। धर्म ग्रंथ बताते हैं कि महर्षि अत्रि ने अपनी पत्नी अनुसूइया के साथ ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर त्रिकूट पर्वत (Trikuta Mountains) पर पुत्र की इच्छा कड़ी तपस्या की थी। ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूइया के तप से त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु, महेश उनके आश्रम पहुंचे। आश्रम पहुंचकर त्रिदेव ने उन्हें कहां की हमारे अंश से आपके यहां 3 पुत्रों का जन्म होगा, जो माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे और त्रिलोक में विख्यात होंगे। कुछ समय बाद ब्रह्मा जी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए वहीं, विष्णु भगवान के अंश से संसार में संन्यास की पद्धति को आगे प्रचलित करने के लिए दत्तात्रेय का जन्म हुआ, वही महादेव के अंश से मुनि दुर्वासा ने सती अनसूया के कोख से जन्म लिया।

9. हनुमान (Hanuman) अवतार लेकर दिलाई थी श्री राम को लंका पर विजय

महादेव के हनुमान (Hanuman)  अवतार को सभी अवतारों में सबसे ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है। ज्यादातर लोग जानते हैं कि हनुमान जी किसी और का नहीं बल्कि भगवान शंकर के ही अवतार है, जिन्होंने एक वानर के रूप में अयोध्या नंदन श्री राम (Shree Ram) का साथ दिया और सीता माता (Mata Sita) को रावण (Ravan) से आजाद कराने में श्री राम की सहायता की। हनुमान जी माता अंजनी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, जोकि सप्त ऋषियों के संकल्प का ही फल स्वरुप था। अपने आराध्य श्री राम की सहायता और सेवा के उद्देश्य से ही महादेव ने माता अंजनी के गर्भ से अवतार लिया था। पूरी रामायण बिना हनुमान जी के अधूरी हैं। हनुमान जी से बड़े श्री राम भक्त आज तक इस धरती पर प्रकट नहीं हुए। हनुमान जी को चिरंजीवी का वरदान मिला है, इसके साथ ही वह कलयुग के अंत तक इस धरती लोक पर निवास करेंगे और तो और भगवान विष्णु के दसवें अवतार यानि की कल्कि अवतार के दौरान हनुमान जी अधर्म का अंत करेंगे और धर्म की स्थापना करेंगे। गौरतलब है कि आज भी कई जगह हनुमान जी के इस धरती लोक पर होने के साक्ष्य मिले हैं।

10. वृषभ (Vrishabha) अवतार विशेष परिस्थितियों के चलते लिया था भोलेनाथ ने

भगवान आशुतोष ने वृषभ (Vrishabha)अवतार विशेष परिस्थितियों के चलते लिया था। कुछ ग्रंथों के अनुसार एक कथा प्रचलित है जिसमें बताया गया कि सभी के पालनकर्ता भगवान विष्णु दैत्यों को मारने के लिए पाताल लोक पहुंचे थे और उन्हें वहां देख कई महिलाएं मोहित हो गई थी। भगवान विष्णु के पुत्रों को इन स्त्रियों ने जन्म दिया था, जिन्होंने पाताल से पृथ्वी तक बढ़ा उपद्रव मचा के रखा हुआ था। पाताल से पृथ्वी लोक तक मचे उपद्रव को देखते हुए ब्रह्मा जी घबरा कर ऋषि-मुनियों और अन्य देवताओं के साथ महादेव के पास पहुंचे थे और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की थी, जिस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए महादेव ने वृषभ रूप धारण किया था और भगवान विष्णु के पुत्रों का संहार किया था।

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11. यतिनाथ (Yatinath) का अवतार लेकर महादेव ने ली थी भील दंपत्ति की परीक्षा

भगवान शंकर का 11 अवतार यतिनाथ (yatinath) अवतार को माना जाता है। यह अवतार भोलेनाथ ने भील दंपत्ति की परीक्षा लेने के लिए लिया था, जिसमें वह अतिथि बनकर भील दंपत्ति के पास पहुंचे थे। ग्रंथों में बताया गया है कि अर्बुदांचल पर्वत (Arbudanchal Mountains) के पास एक शिव भक्त दंपत्ति जिनका नाम आहूक और आहूका भील था वह रहते थे। एक दिन यतिनाथ (yatinath) का भेष धारण करके भगवान शंकर भील दंपत्ति के घर पहुंचे। आहूक अपना धनुष बाण लेकर बाहर चला गया। सुबह यतिनाथ (yatinath) और आहूका ने देखा कि आहूक को  वन प्राणियों द्वारा मार दिया गया है, जिस पर यतिनाथ (yatinath) बहुत दुखी हुए। इसके साथ ही आहूका अपने पति आहूक की चिताग्नि में जलने लगी, जिसे देख महादेव ने आहूका को साक्षात दर्शन दिए साथ ही उन्हें वरदान दिया कि वह अपने अगले जन्म में फिर से अपने पति से मिल पाएंगी।

12. कृष्ण दर्शन (Krishna Darshan) का अवतार लेकर महादेव ने बताया धार्मिक कार्यों का महत्व

महादेव का बारवां अवतार कृष्ण दर्शन (Krishna Darshan) अवतार था। इस अवतार में भगवान शिव (Lord Shiva) ने यज्ञ और धार्मिक कार्यों के महत्व को बताने के लिए लिया था, जिसके चलते  यह अवतार पूरी तरह से धर्म का प्रतीक ही माना जाता है। ग्रंथों में एक कथा बताई जाती है जिसके अनुसार  इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की  नवमी पीढ़ी में राजा नभग (Raja Nabhag) ने जन्म लिया था। नभग ने एक बार यज्ञ भूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के साथ स्पष्ट उच्चारण के जरिए यज्ञ संपन्न कराया था, जिसके बाद आंगरिक ब्राह्मण ने नभग को यज्ञ का अवशिष्ट धन देकर स्वर्ग चले गए थे, जिसके बाद वहां महादेव कृष्ण दर्शन के रूप में प्रकट हुए और बोले कि यज्ञ का अभीष्ट धन पर हक उनका है। जिसके बाद कृष्ण दर्शन और राजा नभग के बीच विवाद हुआ। विवाद के दौरान महादेव के अवतार कृष्ण दर्शन ने राजा नभग से अपने पिता से ही निर्णय लेने को कहा, जिस पर नभग के पूछने पर श्राद्ध देव ने कहा कि वह पुरुष कोई और नहीं देवों के देव महादेव है। यज्ञ में अवश्य वस्तु उन्हीं की ही है। जिसके बाद पिता की बात सुनकर नभग ने शिवजी की स्तुति की और वह अवशिष्ट धन महादेव को सौंप दिया।

13. अवधूत अवतार ने इंद्र (Indra) के धमंड को चूर किया था

इंद्र के घमंड (Pride of Indra) को चूर करने के लिए महादेव ने अवधूत का अवतार लिया था जो कि महादेव का तेरहवा अवतार है। बताया जाता है कि एक समय जब भगवान इंद्र, बृहस्पति और अन्य देवताओं को लेकर महादेव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत (Kailash Mountain) पर जा रहे थे, तब इंद्र देव की परीक्षा लेने के लिए भोलेनाथ ने अवधूत का रूप धारण किया था और उनके मार्ग को रोका था। जिसके बाद इंद्र ने बार-बार अवधूत से उसका परिचय पूछा। कई बार परिचय पूछने पर अवधूत तब भी मौन रहा, जिस पर क्रोधित होकर इंद्र ने अवधूत पर अपना वज्र जैसे ही छोड़ना चाहा वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया। बृहस्पति ने अवधूत अवतार में महादेव को पहचान लिया और उनकी विधि पूर्वक स्तुति करने लगे, जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने इंद्र को माफ कर दिया।

14. भिक्षुवर्य (Bhikshuvarya) अवतार लेकर महादेव नें दिया संदेश कि वह करते है प्राणियों के जीवन की रक्षा

भिक्षुवर्य (Bhikshuvarya) अवतार महादेव का वह अवतार है जिसने यह संदेश दिया है कि भगवान भोलेनाथ संसार में जन्म लेने वाले हर इंसान के जीवन की रक्षा भी करते हैं और वह उनके सबसे बड़े रक्षक है। ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रु ने मौत के घाट उतार दिया था, जैसे तैसे कर नरेश सत्यरथ की गर्भवती पत्नी ने अपने आप को शत्रुओं से बचाया और कुछ समय बाद विदर्भ नरेश की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। कुछ दिनों बाद जब पानी पीने के लिए रानी सरोवर गई तो घड़ियाल ने उन्हें अपना भोजन बना लिया और वह बालक वहां भूख-प्यास से तड़पता रहा। तभी महादेव (Mahadev) द्वारा भेजी गई एक भिखारिन वहां पहुंची। शिव जी ने भिक्षुक के रूप में भिखारिन को उस बालक के बारे में बताया और उससे उसका पालन पोषण करने का निर्देश दिया। साथ ही यह भी बताया कि वह बालक कोई और नहीं बल्कि विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है। इसके साथ ही महादेव ने जो भिक्षुक रूप धारण किया हुआ था उस भिखारिन को फिर अपना वास्तविक रूप भी दिखाया, जिसके बाद शिव की आज्ञा अनुसार भिखारिन ने बालक का पालन पोषण किया और जब बालक बड़ा हो गया तो उसने महादेव जी की कृपा से दुश्मनों पर विजय प्राप्त की और अपना राज्य प्राप्त कर लिया।

15. सुरेश्वर (Sureshwar) अवतार के जरिए भोलेनाथ ने अपने भक्त के प्रति भावना और प्रेम को किया था प्रदर्शित

भोलेनाथ का सुरेश्वर अवतार उनका पंद्रवाह अवतार जो अपने भक्त के प्रति भोलेनाथ की प्रेम भावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में महादेव ने एक छोटे से बालक की भक्ति से खुश होकर उसे अपने परम भक्त और अमर पद का वरदान दिया था। बालक उपमन्यु को शंभू ने अपने वास्तविक रूप के दर्शन दिए थे और अनश्वर सागर प्रदान किया था इस अवतार को लेकर यह कथा प्रचलित है कि व्याघ्र पाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर रहता था और उसे हमेशा ही दूध की इच्छा रहती थी उपमन्यु की इच्छा को देखते हुए उसकी मां ने उसे शिव जी की शरण में जाने को कहा जिस पर उपमन्यु चला गया जहां उसने ओम नमः शिवाय का जाप किया उपमन्यु के जब से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने सुरेश्वर का रूप धारण किया और उपमन्यु के समक्ष उपस्थित हो गए और वह उपमन्यु के सामने शिवजी की अलग-अलग तरह से निंदा करने लगे जिस पर उपमन्यु क्रोधित हो और इंद्र को मारने के लिए खड़ा हो गया जिससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उपमन्यु को अपने वास्तविक दर्शन दिए और उसे अमर पद और परम भक्ति का वरदान दिया

16. किरात (Kiraat) के जरिए महादेव ने ली थी अर्जुन की परीक्षा

किरात (Kiraat) अवतार महादेव का वह अवतार है जिसमें उन्होंने पांडुपुत्र अर्जुन (Arjun) की वीरता की परीक्षा ली थी। महाभारत की कथा के अनुसार जब अर्जुन वनवास गए हुए थे इसी दौरान भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए अर्जुन द्वारा घोर तपस्या की गई थी। वही दुर्योधन (Duryodhana)  द्वारा अर्जुन को मारने के लिए मूड नामक दैत्य भेजा गया था जिसने सूअर (Swine) का रूप धारण किया हुआ था। सूअर को देख अर्जुन ने उस पर बाण से प्रहार कर दिया, वही महादेव (Mahadev) ने भी किरात का वेश धारण कर उसे सूअर पर बाण चला दिया। वही अर्जुन महादेव की माया को नहीं समझ पाए और कहने लगे कि सूअर का वध उनके बाण से हुआ है, जिस पर दोनों के बीच विवाद हो गया। जिसके बाद किरात के साथ अर्जुन ने युद्ध किया। अर्जुन (Arjun) की वीरता देख महादेव काफी प्रसन्न हुए हैं और उनको महादेव ने अपने वास्तविक रूप का दर्शन कराया, इसके साथ ही महादेव ने अर्जुन को कौरवों पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद भी दिया।

17. ब्रह्मचारी (Brahmachari) के रुप लेकर माता पार्वती के सामने की थी महादेव ने खुद की निंदा

माता सती (Mata Sati) द्वारा दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद हिमालय के घर उनका पुर्नजन्म हुआ था और उन्होंने महादेव को अपने पति के रूप में पाने की इच्छा जताई और उसके लिए घोर तप भी किया था। माता पार्वती (Mata Parvati) की परीक्षा लेने के लिए स्वयं महादेव ब्रह्मचारी का रूप धारण करके उनके पास पहुंचे थे, जहां ब्रह्मचारी को देख माता पार्वती ने उनकी विधिवत पूजा की। ब्रह्मचारी (Brahmachari) ने माता पार्वती से उनके इस घोर तप का उद्देश्य पूछा, इसके साथ ही वह महादेव की निंदा करने लगे साथ ही उन्हें श्मशान वासी और कापालिक भी कहा। जिसको सुनकर माता पार्वती काफी क्रोधित हो उठी। माता पार्वती को क्रोधित देख और अपने प्रति उनकी भक्ति और प्रेम को देखकर भोलेनाथ खुद को रोक ना सके और उन्होंने माता पार्वती को अपने वास्तविक रूप का दर्शन कराया, जिसको देख माता पार्वती काफी प्रसन्न हुई।

18. सुनटनर्तक का अवतार लेकर महादेव पहुंचे थे राजा हिमालय के पास माता पार्वती  का हाथ मांगने

हिमालय राजा की पुत्री पार्वती का हाथ मांगने के लिए महादेव द्वारा  सुनटनर्तक का भेष धारण किया गया था, जिसमें महादेव ने नट का रूप लिया हुआ था और वह हाथ में डमरू लेकर हिमाचल पहुंचे थे और वहां उनके द्वारा नृत्य किया गया था। महादेव द्वारा इतना सुंदर नृत्य किया गया कि सब ही लोग वहां प्रसन्न हो गए। नटराज (Natraj) के नृत्य से हिमालय राज इतना प्रसन्न हुए कि उन्होंने उनसे भिक्षा मांगने को कहा तो महादेव ने भिक्षा के रूप में राजा हिमाचलय से उनकी पुत्री पार्वती जी का हाथ मांग लिया, जिसको सुनकर हिमाचल राज काफी क्रोधित हो उठे। वही महादेव जी ने पार्वती माता को अपने साक्षात रूप का दर्शन कराया और वहां से चले गए। महादेव के वहां से जाने के बाद हिमालय राज और मैना देवी को दिव्य ज्ञान हुआ की प्राप्ति हुई और उन्होंने महादेव को पार्वती जी का हाथ सौंपने का निश्चय कर लिया।

19. यक्ष (Yaksha) अवतार लेकर महादेव ने किया था देवताओं के झूठे अभिमान को दूर

महादेव द्वारा यक्ष (Yaksha) अवतार लिया गया था और यह अवतार तब लिय़ा गया था जब भगवान शंकर (Lord Shiva) को देवताओं के झूठे अभिमान को दूर करना था। दरअसल समुद्र मंथन के दौरान जब विष (Poison) निकला था तो संसार को बचाने के लिए भगवान शंकर ने विष अपने कंठ में रोक लिया था, वही अमृत कलश जब निकला था तो देवताओं ने अमृत पान किया और वह अमर हो गए थे और इसी बात का उन्हें अभिमान हो गया था कि संसार में सबसे ज्यादा बलशाली वही है। देवताओं के अभिमान को तोड़ने के लिए महादेव ने यक्ष का रूप धारण किया और देवताओं के समक्ष एक तिनका रख दिया और कहा कि वह इसे या तो कांटे दें, या जला दें, या डूबा दे या फिर उड़ा दें। लेकिन अपनी पूरी शक्ति लगाने के बावजूद भी देवताओं द्वारा उस तिनके को हिलाया भी ना जा सका। इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि यक्ष अवतार कोई और नहीं बल्कि महादेव का अवतार है, जिसके बाद देवताओं द्वारा महादेव की स्तुति की गई और अपने अपराध और अभिमान के लिए भोलेनाथ से माफी मांगी गई।

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