gangaur festival

15 अप्रैल को मनाया जाएगा गणगौर, जाने इससे जुड़ी मान्यता, महिलाओं को मिलता है अखंड सौभाग्य का वर

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15 अप्रैल यानी कि गुरुवार को देश भर में गणगौर का त्योहार मनाया जाएगा। गणगौर का त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार अखंड सौभाग्य के लिए मनाया जाता है, जिसमें सुहागिन महिलाएं शिव पार्वती की पूजा करती है। अपने पति की लंबी उम्र के साथ ही महिलाएं घर में सुख शांति हो इसकी कामना भी करती हैं। शिवजी और पार्वती जी के सिंगार के साथ ही महिलाएं भी सोलह सिंगार करती हैं। गौरतलब है कि इसी दिन मां पार्वती ने भोलेनाथ से सौभाग्यवती होने का वरदान पाया था और इसी खुशी में मां पार्वती ने अन्य महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया था।

गणगौर का व्रत रखने वाली महिलाओं के पति की उम्र होती है लंबी

मान्यता है कि ये व्रत मां पार्वती और भगवान शिव के अनंत प्रेम का प्रतीक है। गणगौर जिसमें गण का मतलब शिव होता है वही गौर का मतलब पार्वती है, वही इस व्रत को कुंवारी लड़कियां भी रखती है। ऐसा माना जाता है कि कुंवारी लड़कियों द्वारा इस व्रत को रखने से उन्हें अपने पसंद का वर मिलता है। गणगौर की पूजा करते वक्त गणगौर माता पर सिंदूर और महावर चढ़ाने का अनोखा महत्व बताया गया है, इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि अगर शादीशुदा स्त्री गौर माता पर चढ़ाए गए सिंदूर से अपनी मांग भर्ती है तो उनके पति की उम्र लंबी होती है।

गणगौर को लेकर है कई मनयाताएं

गणगौर के अवसर पर महिलाएं घर में बेसन, मैदा या आटे में हल्दी मिलाकर उसके बड़े बनाती हैं, जिनका स्वाद मीठा और नमकीन होता है। ऐसा माना जाता है कि जितने ज्यादा बड़े पार्वती माता को चढ़ाए जाते हैं, घर में उतना ही धन और वैभव बढ़ता है। पूजा के बाद महिलाएं यह बड़े अपनी जेठानी, सास और ननद को देती है। यह बड़े गहनों के आकार में होते हैं। गणगौर पूजा के लिए कई मान्यता है एवं कई कंविदंतिया भी है। कई लोगों का कहना है कि इस दिन भगवान शिव और पार्वती जी का विवाह हुआ था, तो कुछ लोग मानते हैं कि इस दिन शिवरात्रि (शिव पार्वती के विवाह) के बाद भगवान शंकर पार्वती माता को उनके मायके लेने गए थे, वहीं कुछ का मानना है कि इस दिन पार्वती माता सोलह सिंगार करके सौभाग्यवती महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान देने के लिए निकली थी, जिसके चलते सुहागिन महिलाएं भगवान शिव के संग पार्वती जी की पूजा अर्चना करती है।

गणगौर की पूजा की विधि कुछ इस प्रकार है

ऐसा माना जाता है कि कुंवारी कन्याएं और विवाहित स्त्रियां गणगौर पूजा के दिन सुबह सुंदर कपड़े और गहने पहनकर सर पर लोटा रखकर बाग बगीचों में निकलती है, जहां से वह ताजा पानी लेकर आती है। पानी लेकर आते वक्त महिलाएं उन लोटों को दूब और फूलों से सजा कर अपने सिर पर रखती है और गणगौर के गीत गाती है। इसी पानी का उपयोग करके शुद्ध मिट्टी से भगवान महादेव और पार्वती जी के स्वरूप की प्रतिमा बनाई जाती है और उसकी स्थापना की जाती है। शिव और गौरी की इस प्रतिमा को सुंदर वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनका पूरी तरह से श्रृंगार किया जाता है। इसके साथ ही उन पर धूप, दीप, फूल, चंदन, अक्षत चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है। इसके साथ ही दीवार पर 16 बिंदिया, मेहंदी और काजल लगाया जाता है।

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इस दिन महिलाएं करती है सोलह श्रृंगार और निखारती है अपनी सुंदरता

इस दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार भी करती है, जिसमें मांग टीका, बिंदी, सिंदूर, काजल, नथ, बाली, मंगलसूत्र, मेहंदी, चूड़ियां, गजरा, बाजूबंद, अंगूठी, कमरबंद, पायल, बिछिया, और वस्त्र उनकी खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं। गणगौर की पूजा मुख्य रूप से राजस्थान में मनाई जाती है, इसी के साथ मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ इलाकों में भी गणगौर का व्रत रखा जाता है और पूरे विधि विधान के साथ इस पर्व को मनाया जाता है।

गणगौर में सुनाई जाने वाली व्रत कथा

एक समय की बात है जब भगवान शंकर और पार्वती माता और उनके संग नारद भगवान भ्रमण के लिए निकले थे, वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल की तृतीय तिथि के दिन एक गांव में पहुंचे, जहां उनके आने की खबर सुनकर वहां की गरीब महिलाओं ने उनका स्वागत किया। भगवान शंकर, पार्वती माता और नारद जी के स्वागत के लिए वहां की गरीब स्त्रियों ने थालियों में हल्दी और अक्षत लेकर उनकी पूजा अर्चना की। महिलाओं के पूजन भाव को देखकर माता पार्वती ने अपना सारा सुहाग रस उन पर ही छिड़क दिया‌ और उन महिलाओं को अटल सुहाग की प्राप्ति हुई, जिसके बाद वह वहां से वापस लौट गई।

माता पर्वती ने अपनी उंगली चीरकर छिड़का था महिलाओं पर रक्त, महिलाओं को मिला सौभाग्यवती का वरदान

इसके कुछ देर बाद गांव की धनी वर्ग की महिलाएं अनेक प्रकार के पकवान, सोने चांदी से थाली को सजा कर और सोलह श्रृंगार करके माता पार्वती और शिव जी के पास पहुंची, जिनको देख महादेव ने माता पार्वती से कहा कि तुमने अपना सारा सुहाग रस तो निर्धन महिलाओं को दे दिया है, अब इन महिलाओं को तुम क्या दोगी। जिस पर पार्वती माता बोली हे प्राणनाथ! निर्धन स्त्रियों को मैंने ऊपरी पदार्थों से निर्मित सुहाग रस दिया था, इसलिए उनका सुहाग धोती जैसा रहेगा। वहीं इन महिलाओं को मैं अपनी उंगली चीर कर अपने रक्त का सुहाग रस दूंगी जिससे कि वह मेरी ही तरह सौभाग्यवती हो जाएंगी। जब महिलाओं ने शिवजी और पार्वती जी की पूजा समाप्त कर ली तो उसके बाद पार्वती माता ने अपनी उंगली चीरी और उंगली से आने वाले रक्त को उन महिलाओं के ऊपर छिड़क दिया जिस पर जिस तरह छीटे पड़े उन्होंने वैसा ही सुहाग पा लिया।

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माता पार्वती ने दी महिलाओं को ये सीख और महादेव से गौरी ने पाया ये वरदान

माता पार्वती ने उन महिलाओं से कहा कि तुम सब ही आभूषणों, वस्त्रों का परित्याग करके और मोह माया से खुद को दूर रखते हुए अपने पति की तन-मन-धन से सेवा करो, तुम लोगों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके बाद माता पार्वती ने भगवान शंकर से आज्ञा ली और वह नदी में स्नान करने के लिए चली गई। स्नान करने के बाद माता पार्वती ने रेत से शिव जी की मूर्ति‌ का निर्माण किया और उसकी पूजा की। माता पार्वती ने महादेव की मूर्ति को भोग लगाया, साथ ही प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण किया और उसके बाद अपने मस्तक पर टीका लगा लिया। इसी दौरान पार्थिव शिवलिंग से महादेव प्रकट हुए और उन्होंने पार्वती माता को वरदान दिया कि आज के दिन जो भी महिला तुम्हारा पूजन और तुम्हारा व्रत करेंगी उसका पति चिरंजीवी होगा तथा वह मोक्ष को प्राप्त होगा। महादेव इस वरदान को माता पार्वती को देकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए। वही माता पार्वती नदी के तट से महादेव की पूजा कर कुछ देर उपरांत उसी स्थान पर आ पहुंची, जहां पर भगवान शंकर और नारद जी को छोड़ कर गई थी। जब महादेव ने माता पार्वती से पूछा कि इतना वक्त तुम्हें कहां लग गया तो इस पर पार्वती माता ने कहा कि मुझे नदी किनारे मेरा भाई भावज मिल गए थे, जिन्होंने मुझे दूध भात खाने के लिए रोक लिया था।

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